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रहीम के दोहे हिंदी व्याख्या सहित

रहीम के दोहे हिंदी   व्याख्या सहित कहि रहीम संपति सगे , बनत बहुत बहु रीत |  बिपति कसौटी जे कसे , तेई साँचे मीत | |   सरलार्थ – रहीम कवि कहते हैं कि किसी भी मनुष्य के पास जब तक धन -दौलत या संपत्ति रहती है , तब तक बहुत से लोग कई तरह से उसके अपने बनने की कोशिश करते हैं | लोग कहते हैं कि मैं तो तुम्हारे उस रिश्तेदार का रिश्तेदार हूँ | अरे ! तुम तो मेरे दोस्त रहे हो , इत्यादी | लोग किसी भी तरह से करीब आने की कोशिश करते हैं | लेकिन सच्चे मित्र तो वही होते हैं , जो मुसीबत के समय में साथ नहीं छोड़ते हैं और सच्चे मित्र मुसीबत के समय जाँच में खरे उतरते हैं | 2.  जाल परे जल जात बहि , तजि मीनन को मोह |     रहिमन मछरी नीर को , तऊ न छाँड़ति    छोह || सरलार्थ – कवि रहीम कहते हैं कि सागर , नदी या तालाब में मछलियों को पकड़ने के लिए जब जाल डाला जाता है , तब जाल में से पानी बह जाता हैं | पानी भी   जाल का बंधक बनकर मछलिओं का साथ देने को तैयार नहीं होता है | उसे मछलिओं से कोई प्यार नहीं रह जाता है | लेकिन ऐसी स्थिति में भी मछलियाँ पानी से अपना प्रेम या मोह नहीं छोड़ पाती हैं और व