रहीम के दोहे हिंदी व्याख्या सहित
रहीम के दोहे
2. जाल परे जल जात बहि , तजि मीनन को मोह |
सरलार्थ – मनुष्य का शरीर भी परिस्थितियों के अनुसार
खुद को समायोजित कर लेता है | इस सम्बन्ध में कवि रहीम कहते हैं कि इस शरीर को
सर्दी , गर्मी , वर्षा जैसी विषम परिस्थितियों में कठिनाइयों को उसी प्रकार सहना
पड़ता है , जैसे धरती सर्दी , गर्मी और वर्षा की अनेक कठिनाइयों को
हिंदी व्याख्या सहित
- कहि रहीम संपति सगे , बनत बहुत बहु
रीत | बिपति कसौटी जे कसे , तेई साँचे मीत | |
सरलार्थ – रहीम कवि कहते हैं कि
किसी भी मनुष्य के पास जब तक धन -दौलत या संपत्ति रहती है , तब तक बहुत से लोग कई
तरह से उसके अपने बनने की कोशिश करते हैं | लोग कहते हैं कि मैं तो तुम्हारे उस
रिश्तेदार का रिश्तेदार हूँ | अरे ! तुम तो मेरे दोस्त रहे हो , इत्यादी | लोग
किसी भी तरह से करीब आने की कोशिश करते हैं | लेकिन सच्चे मित्र तो वही होते हैं ,
जो मुसीबत के समय में साथ नहीं छोड़ते हैं और सच्चे मित्र मुसीबत के समय जाँच में खरे
उतरते हैं |
2. जाल परे जल जात बहि , तजि मीनन को मोह |
रहिमन मछरी नीर को , तऊ न
छाँड़ति छोह ||
सरलार्थ – कवि रहीम कहते हैं कि
सागर , नदी या तालाब में मछलियों को पकड़ने के लिए जब जाल डाला जाता है , तब जाल
में से पानी बह जाता हैं | पानी भी जाल का
बंधक बनकर मछलिओं का साथ देने को तैयार नहीं होता है | उसे मछलिओं से कोई प्यार
नहीं रह जाता है | लेकिन ऐसी स्थिति में भी मछलियाँ पानी से अपना प्रेम या मोह
नहीं छोड़ पाती हैं और वे पानी के बिना अपने प्राण त्याग देती हैं |
3. तरुवर फल नहिं खात हैं , सरवर पियत
न पान |
कहि रहीम परकाज हित , संपति –
सचहिं सुजान ||
सरलार्थ – कवी रहीम कहते हैं कि
प्रकृति हमेशा से ही परोपकारी स्वाभाव की रही है | जैसे पेड़ प्रकृति के अंग होते
हैं | मगर पेड़ अपना फल स्वयं नहीं खाते हैं , और तालाब कभी भी अपना जल स्वयं नहीं
पीते हैं | पेड़ अपना फल और तालाब अपना पानी दूसरो के लिए धारण करते हैं | इसी
प्रकार भले लोग भी अपनी संपत्ति का संचय दूसरो की भलाई के लिए ही करते हैं अर्थात्
अपने धन को दूसरों की भलाई में लगा देते हैं |
4. थोथे बादर कवार के , ज्यों रहीम
घहरात |
धनी पुरुष निर्धन भए , करें पाछिली
बात | |
सरलार्थ – कवि रहीम कहते हैं कि कुछ
लोग धनी रहते हुए , जिन बातों , आदतों के आदी होते हैं , वे लोग धन – दौलत के चले
जाने के बाद भी अपनी पुराणी आदतों को नहीं छोड़ पाते हैं और अपने पुराने दिनों की
बडबोलेपन की बातें ठीक उसी तरह करते हैं , जैसे कवार ( आश्विन माह ) के जलहीन बादल
गरजते हैं | मतलब वर्षा ऋतु ( आषाढ़ , सावन
, भादों ) के बादल जलयुक्त होते हैं और जब
गरजते हैं तो बारिश की सम्भावना बनी रहती है परन्तु कवार ( आश्विन ) माह
के जलहीन
बादल गरजते तो हैं , पर बरस नहीं
सकते हैं |
5. धरती की – सी रीत है , सीत घाम औ मेह |
जैसी परे सो सहि रहे , त्यों रहीम
यह देह | |
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