रहीम के दोहे हिंदी व्याख्या सहित

रहीम के दोहे

हिंदी  व्याख्या सहित


  1. कहि रहीम संपति सगे , बनत बहुत बहु रीत | 
    बिपति कसौटी जे कसे , तेई साँचे मीत | | 

सरलार्थ – रहीम कवि कहते हैं कि किसी भी मनुष्य के पास जब तक धन -दौलत या संपत्ति रहती है , तब तक बहुत से लोग कई तरह से उसके अपने बनने की कोशिश करते हैं | लोग कहते हैं कि मैं तो तुम्हारे उस रिश्तेदार का रिश्तेदार हूँ | अरे ! तुम तो मेरे दोस्त रहे हो , इत्यादी | लोग किसी भी तरह से करीब आने की कोशिश करते हैं | लेकिन सच्चे मित्र तो वही होते हैं , जो मुसीबत के समय में साथ नहीं छोड़ते हैं और सच्चे मित्र मुसीबत के समय जाँच में खरे उतरते हैं |




2.  जाल परे जल जात बहि , तजि मीनन को मोह |
    रहिमन मछरी नीर को , तऊ न छाँड़ति   छोह ||

सरलार्थ – कवि रहीम कहते हैं कि सागर , नदी या तालाब में मछलियों को पकड़ने के लिए जब जाल डाला जाता है , तब जाल में से पानी बह जाता हैं | पानी भी  जाल का बंधक बनकर मछलिओं का साथ देने को तैयार नहीं होता है | उसे मछलिओं से कोई प्यार नहीं रह जाता है | लेकिन ऐसी स्थिति में भी मछलियाँ पानी से अपना प्रेम या मोह नहीं छोड़ पाती हैं और वे पानी के बिना अपने प्राण त्याग देती हैं |


3.   तरुवर फल नहिं खात हैं , सरवर पियत न पान |
     कहि रहीम परकाज हित , संपति – सचहिं सुजान ||

सरलार्थ – कवी रहीम कहते हैं कि प्रकृति हमेशा से ही परोपकारी स्वाभाव की रही है | जैसे पेड़ प्रकृति के अंग होते हैं | मगर पेड़ अपना फल स्वयं नहीं खाते हैं , और तालाब कभी भी अपना जल स्वयं नहीं पीते हैं | पेड़ अपना फल और तालाब अपना पानी दूसरो के लिए धारण करते हैं | इसी प्रकार भले लोग भी अपनी संपत्ति का संचय दूसरो की भलाई के लिए ही करते हैं अर्थात् अपने धन को दूसरों की भलाई में लगा देते हैं |  
   

4. थोथे बादर कवार के , ज्यों रहीम घहरात |
    धनी पुरुष निर्धन भए , करें पाछिली बात | |

सरलार्थ – कवि रहीम कहते हैं कि कुछ लोग धनी रहते हुए , जिन बातों , आदतों के आदी होते हैं , वे लोग धन – दौलत के चले जाने के बाद भी अपनी पुराणी आदतों को नहीं छोड़ पाते हैं और अपने पुराने दिनों की बडबोलेपन की बातें ठीक उसी तरह करते हैं , जैसे कवार ( आश्विन माह ) के जलहीन बादल गरजते हैं | मतलब वर्षा  ऋतु ( आषाढ़ , सावन ,  भादों ) के बादल जलयुक्त होते हैं और जब गरजते हैं तो बारिश की सम्भावना बनी रहती है परन्तु कवार ( आश्विन  )  माह के जलहीन   
बादल गरजते तो हैं , पर बरस नहीं सकते हैं |


5. धरती की – सी  रीत है , सीत घाम औ मेह |
   जैसी परे सो सहि रहे , त्यों रहीम यह देह   | |


सरलार्थ – मनुष्य का शरीर भी परिस्थितियों के अनुसार खुद को समायोजित कर लेता है | इस सम्बन्ध में कवि रहीम कहते हैं कि इस शरीर को सर्दी , गर्मी , वर्षा जैसी विषम परिस्थितियों में कठिनाइयों को उसी प्रकार सहना पड़ता है , जैसे धरती सर्दी , गर्मी और वर्षा की अनेक कठिनाइयों को

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