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मध्यम मार्ग - बुद्ध और राजकुमार श्रोण |

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अति सर्वत्र वर्जयेत् अति की सब जगह मनाही की गई है | हमें जीवन में मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए |    अति की भली न बोलना , अति की भली न चुप | अति की भली न बरसना , अति की भली न धूप || जैसे ज्यादा बोलना ठीक नहीं होता है , और ज्यादा चुप रहना भी ठीक नहीं होता है अत्यधिक बारिश भी हानिकारक होती है और अत्यधिक धूप भी हानिकारक होती है     एक युवक राजकुमार श्रोण जब बुद्ध के पास दीक्षित हुआ | राजधानी के लोग इस बात पर भरोसा   नहीं कर सकें | किसी ने कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था कि श्रोण भिक्षु बन जाएगा | बुद्ध के भिक्षु भी भरोसा नहीं कर सके थे |   वे आंखें फाड़े अवाक् रह गए –   जब श्रोण आया और बुद्ध के चरणों में गिरा और उसने कहा – “ मुझे दीक्षा दें , मुझे अपना शिष्य बना लें |                                                                                                   वह प्रसिद्ध सम्राट था | उसकी ख्याति भोगी की तरह थी | उसके राजमहल में उस जमाने की सबसे सुन्दर स्त्रियाँ थीं | सारी दुनिया के कोने – कोने से श्रेष्ठतम शराब लाकर , उसके राजमहल में इकठ्ठी रहती थीं | वह रात भर राग