मध्यम मार्ग - बुद्ध और राजकुमार श्रोण |
अति सर्वत्र वर्जयेत्
अति की सब जगह मनाही की गई है | हमें जीवन में
मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए |
अति की भली न बोलना , अति की भली न चुप |
अति की भली न बरसना , अति की भली न धूप ||
जैसे
ज्यादा बोलना ठीक नहीं होता है , और ज्यादा चुप रहना भी ठीक नहीं होता है
अत्यधिक बारिश भी हानिकारक होती है और अत्यधिक
धूप भी हानिकारक होती है
एक युवक राजकुमार श्रोण जब बुद्ध के पास दीक्षित
हुआ | राजधानी के लोग इस बात पर भरोसा
नहीं कर सकें | किसी ने कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था कि श्रोण भिक्षु बन
जाएगा | बुद्ध के भिक्षु भी भरोसा नहीं कर सके थे | वे आंखें फाड़े अवाक् रह गए – जब श्रोण आया और
बुद्ध के चरणों में गिरा और उसने कहा – “ मुझे दीक्षा दें , मुझे अपना शिष्य बना लें | वह प्रसिद्ध सम्राट था | उसकी ख्याति भोगी की
तरह थी | उसके राजमहल में उस जमाने की सबसे सुन्दर स्त्रियाँ थीं | सारी दुनिया के
कोने – कोने से श्रेष्ठतम शराब लाकर , उसके राजमहल में इकठ्ठी रहती थीं | वह रात
भर राग - रंग में डूबा रहता था और दिन भर सोता था | ऐसे भोग में डूबा था कि वह
संयास लेगा , कभी किसी ने सोचा भी नहीं था |
महल की सीड़ियाँ चढ़ने के लिए सहारे के लिए उसने रेलिंग नहीं लगवाईं थी ;
रेलिंग की जगह नग्न स्त्रियाँ खड़ी रहती थी | जिनके कंधे पर हाथ रखकर वह सीड़ियाँ
चढ़ता था | उसने अपना महल स्वर्ग की तरह बनवाया था|
बुद्ध के भिक्षुओं ने बुद्ध से पूछा – “ हमें
भरोसा नहीं हो रहा है कि श्रोण , और संन्यस्त हो रहा है ”
बुद्ध ने कहा – “ तुम्हें भरोसा हो या न
हो , मैं जानता था कि यह संन्यस्त होगा |
सच पूछो तो मैं
इसी के लिए श्रावस्ती आया था | क्योंकि जो एक अति पर जाता है वह , दूसरी अति पर जाएगा | भोग की एक अति है | वह
इसने पूरी कर डाली | अब और आगे रास्ता नहीं है तो वह विपरीत यात्रा पर निकल पड़ा
है | जो अति भोग में जाएगा वह एक न एक दिन अति योग में चला जाएगा | ”
फिर भगवान्
बुद्ध ने कहा – “ तुम थोड़े दिन प्रतीक्षा करो , मैं जो कह रहा हूँ , तुम उसका सत्य
देखोगे | ”
और लोगो ने देखा
| दूसरे भिक्षु तो ठीक रास्ते पर चलते थें , लेकिन श्रोण काँटों और झाड़ियों में
चलता था |
उसके पैर लहू -
लुहान हो जाते थे | दूसरे भिक्षु धूप होती तो वृक्षों की छाया में बैठते , मगर
श्रोण धूप में ही खड़ा रहता | दूसरे भिक्षु तो वस्त्र धारण करते थे मगर श्रोण सिर्फ
लागोटी पहनता था | और ऐसा लगता था जैसे वह लंगोटी भी छोड़ देने के लिए व्याकुल है |
और एक दिन सचमुच उसने लंगोटी भी छोड़ दी | दूसरे भिक्षु तो दिन
में एक बार भोजन करते थे , मगर श्रोण दो दिन में एक बार भोजन करता था | दूसरे
भिक्षु तो बैठ कर भोजन करते थे | मगर श्रोण खड़े – खड़े भोजन करता था | दूसरे
भिक्षु तो भोजन ग्रहण करने के लिए पात्र रखते थे मगर श्रोण हाथ में ही भोजन ग्रहण
करके खाता था | करपात्री बन गया था | उसकी सुन्दर काया सुख गयी | जब वह भिक्षु नहीं
था | वह बहुत सुन्दर था | दूर – दूर से लोग उसे देखने आते थे |
भिक्षु हो जाने
के तीन महीने बाद उसे कोई देखता तो पहचान भी नहीं सकता था कि यही वह सम्राट श्रोण
है |
उसका शरीर काला
पड़ गया था | पैरों में छाले पड़ गए थे | वह सुख कर कांटा हो गया था लेकिन वह अपने
आप को और कसे जा रहा था |
बुद्ध ने अपने
भिक्षुओं से कहा – “ देखते हो , मैंने कहा था , जो एक अति पर जाता है वह दूसरी अति
पर भी जा सकता है ! ”
फिर श्रोण ने भोजन
भी बंद कर दिया | फिर उसने पानी पीना भी बंद कर दिया | अति और अति पर जाने लगा |
फिर ऐसा लगा कि वह दो चार दिन का ही मेहमान है और मर जाएगा |
उसके विश्राम के
लिए , एक वृक्ष के नीचे झोपड़ा लगा दिया
गया था | वह वहीं पड़ा था | बुद्ध वहीं गए , उसके द्वार पर और बुद्ध ने श्रोण से
कहा – “ श्रोण ! मैं तुमसे एक बात पूछने आया हूँ | मैंने सुना है कि जब तू सम्राट
था तो तुझे वीणा बजाने की बड़ी आतुरता रहती थी | तू वीणा बजाने में पारंगत था | मैं
तुमसे एक प्रश्न पुछने आया हूं - जब वीणा
के तार एकदम ढीले हों तब संगीत पैदा होता है या नहीं ? ”
श्रोण ने कहा – “
आप कैसी बातें करते हैं ? आप भलीभांति जानते हैं कि बहुत ढीले हो तो संगीत पैदा
नहीं हो सकता | संगीत की टंकार ही पैदा नहीं हो सकती ! ”
बुद्ध ने फिर कहा
– “ फिर मैं पूछता हूं कि तार अगर बहुत
कसे हों तो संगीत पैदा होता है या नहीं ? ”
श्रोण ने कहा – “
बहुत कसे हो तो छूते ही तार टूट जायेंगे , संगीत पैदा नहीं हो सकता , सिर्फ तारों
के टूटने की आवाज आएगी | साज के टूटने की आवाज आएगी , संगीत कैसे पैदा होगा ? ”
तब बुद्ध ने गंभीर
स्वर में कहा – “ तुझे याद दिलाने आया हूं | जैसे तुझे वीणा का अनुभव है वैसे ही
मुझे जीवन - वीणा का अनुभव है | मैं तुझसे कहता हूँ यदि जीवन के तार भी बहुत कसे हो
तो संगीत पैदा नहीं होता , और अगर जीवन के तार बहुत ढीले हों तो भी संगीत पैदा
नहीं होता | तार मध्य में होने चाहिए | श्रोण ! न बहुत कसे , न बहुत ढीले | संगीतज्ञ
की कुशलता इसी में हैं कि वह तारों को ठीक मध्य में ले आए , उसी को साज का बिठाना
कहते हैं | ऐसा जो जीवन वीणा है | ”
बुद्ध ने आगे कहा
– “ श्रोण , इसलिए अब तू जाग , बहुत हो गया | मैं प्रतीक्षा कर रहा था कि तुझे अति
कर लेने दूँ | पहले तेरे तार बहुत ढीले थे , अब तूने बहुत कस लिए हैं | न तब संगीत
पैदा हुआ , न अब संगीत पैदा हो रहा है | तेरे पास समाधि कहाँ है ? यह तू क्या कर
रहा है ? पहले ठूंस – ठूंस कर खाता था , अब उपवास करके मर रहा है | पहले तू कभी
नंगे पैर नहीं चला था ; तू चलता था तब रास्ते पर मखमल बिछाई जाती थी | अब जो
रास्ता ठीक है उस पर भी नहीं चलता ; झाड़ियों में , काँटों में , उबड़ – खाबड़ रास्तों
में चलता है | पहले शायद शराब के अलावे तूने पानी कभी पीया नहीं था \ अब तू पानी
भी नहीं पीना चाहता |
पहले तेरे घर मांसाहार
के व्यंजन बनाये जाते थे अब तू रुखी रोटी भी खाने को तैयार नहीं हैं | देख , एक
अति से तू दूसरी अति पर चला गया है | उसमे भी संगीत नहीं था इसमे भी संगीत नहीं है
| मैं तुझे पुकार रहा हूँ अब समय आ गया है कि तू मध्यम मार्ग अपना ले , कि तू अब
मध्य में आ जा | ”
श्रोण की आँखों
में आंसू आ गए | अब उसे ज्ञान हुआ |
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