मुश्किलों को इकट्ठा करने के बजाय , प्रारम्भ में ही जड़ से समाप्त कर देना चाहिए |
हमें मुश्किलों को इकट्ठा करके नहीं रखना चाहिए | मुश्किलों के साथ सहानुभूति भरा व्यवहार करने के बजाय ,निर्दयता से उन्हें कुचल देना चाहिए |
शुरुआत में ही मुश्किलों को समाप्त करना
चाहिए , नहीं तो आगे चलकर हमें उस राजा की तरह कष्ट होगा , जिस राजा के बारे में मैं आपको बताने जा
रहा हूँ |
एक राजा था |
उसने तीर्थयात्रा पर जाने का मन बनाया | वह कई तीर्थों की यात्रा करना चाहता था ,
इसलिए उसकी यात्रा
लम्बी होने वाली थी | जब वह यात्रा पर निकल रहा था | उसे बिदाई देने के लिए बहुत
सारे लोग जमा हुए | उन लोगों में से एक , राजा का घनिष्ठ मित्र भी था | जब राजा के
निकलने का समय हुआ |
राजा का घनिष्ठ
मित्र राजा के पास आया और बोला – “ मैं तुम्हें जो बात बताने जा रहा हूँ | उसे तुम
ध्यान से सुनो , इस यात्रा के दौरान
तुम्हें एक छोटा आदमी मिलेगा और वह तुम्हें लड़ने की चुनौती देगा | तब तुम उसे लड़ाई
में हराकर जान से मार देना | उसे जान से मारे बिना आगे मत जाना | ”
जब राजा यात्रा
पर चल पड़ा | तब राजा के मित्र ने फिर एक बार आग्रह के साथ राजा से कहा – “ देखो !
याद रखना , भूलना मत , उस आदमी को मारे बिना आगे नहीं जाना | ”
मित्र की बात पर
राजा को आश्चर्य हुआ | लेकिन राजा अपने
मित्र को भली - भांति जानता था | इसलिए वह मित्र की सलाह लेकर यात्रा पर आगे बढ़
चला | और राजा के मित्र ने उसे ठीक ही बताया था | दुसरे ही दिन जब राजा एक घने जंगल
से गुजर रहा था उ|
उसकी मुलाकात एक छोटे आदमी से हुई , जिसकी ऊंचाई
लगभग डेढ़ हाथ थी | वह छोटा आदमी राजा के सामने सीना तान कर खड़ा हो गया और
राजा को लड़ने की चुनौती दी | राजा ने चुनौती स्वीकार किया और , उस छोटे आदमी से
लड़ने लगा | उस छोटे आदमी को हराने में राजा को देर नहीं लगी |
राजा को अपने
घनिष्ठ मित्र की सलाह याद याद आई | लेकिन राजा को उस छोटे आदमी से सहानुभूति हो गई
और उसे जान से मारे बिना ही राजा आगे बढ़ चला | लेकिन अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता
था की वह छोटा आदमी राजा से फिर मिला | लेकिन इस बार उसकी लम्बाई बढ़ गई थी | वह दो
हाथ जितना ऊँचा हो गया था | उसने राजा को
फिर लड़ने की चुनौती दी | राजा फिर उससे
लड़ा और थोड़ी देर में ही वह छोटा आदमी फिर हार गया | राजा को अपने मित्र की बात फिर याद आई | लेकिन
राजा ने सोचा इतने छोटे आदमी को मारने में कौन सी वीरता है | राजा उसे जीवित छोड़कर
फिर आगे चल पड़ा |
कुछ दिनों बाद
वही छोटा आदमी फिर राजा के सामने आ खड़ा हुआ | लेकिन इस बार वह ढ़ाई हाथ जितना ऊँचा
हो गया था | दोनों में फिर लड़ाई हुई और राजा जीत गया | लेकिन उस आदमी को राजा ने
इस बार भी जान से नहीं मारा | यह क्रम चलता रहा और वह आदमी हर बार पहले से कुछ
ज्यादा लम्बा होकर राजा के सामने आता रहा |
और एक समय ऐसा
भी आया कि जब वह आदमी राजा के सामने आया तब वह राजा से भी लम्बा हो चुका था | हमेशा की तरह इस बार भी उस आदमी ने राजा
को लड़ने की चुनौती दी |
राजा को अपने
मित्र की बात याद आई मगर राजा उस आदमी की लम्बाई देखकर डरा नहीं था | राजा वीर था
| उसने उस आदमी की चुनौती को फिर स्वीकार किया और उससे लड़ने लगा | लेकिन राजा के
लिए इस बार की लड़ाई आसान नहीं थी | इस बार राजा गंभीर रूप से घायल हो गया था ,फिर
भी राजा ने हार नहीं मानी और बहुत देर तक चली घमासान लड़ाई के बाद राजा जीत गया
उसने इस बार उस आदमी को जान से मार डाला |
हमें
भारी कीमत चुकाकर होसियार बनने की क्या जरुरत है ?
इतना
ही कहना है कि जीवन के रास्ते से गुजरते समय , हमारे सामने जो भी मुश्किल आए |
उसके प्रारम्भ में ही उनका सम्पूर्ण नाश करते हुए ही आगे बढ़ना चाहिए , जिससे वे
समस्याएं ज्यादा बड़ी होकर हमारे सामने खड़ी न हो सकें | लेकिन यदि समस्याएँ बड़ी हो
ही जाएं तब भी उस राजा की तरह वीरता के साथ लड़कर समस्यायों का समूल नाश कर देना
चाहिए , भले ही गंभीर कीमत क्यों न चुकानी पड़े |
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