अंतिम प्रार्थना



अंतिम प्रार्थना 

एक मेढ़क था | वह रोज खेत की मेड़ पर बैठता और अपने विचारों में मस्त रहता था | इधर – उधर क्या हो रहा है , इस बात से उसे कोई मतलब नहीं था |


एक दिन एक साँप चुपके से आया और मेढ़क  को निगल लिया |
मरने के बाद मेढ़क स्वर्ग – लोक पहुँचा | मेढ़क ने अपने जीवन में कोई बुरा काम नहीं किया था , अतः  विधाता  उससे प्रसन्न थे | विधाता ने मेढ़क से पूछा –  ‘’ तुम्हारी जो भी इच्छा हो , बताओ | यदि तुम चाहो तो तुम्हें मनुष्य बना देता हूँ | “
मेढ़क साँप से बहुत डरता है | और साँप ने ही उसे मारा था | इसलिए विधाता की बात सुनकर , मेढ़क विधाता से बोला – ” भगवान ! मुझे साँप बना दीजिए | ”
विधाता ने उसे साँप बना दिया | अब वह साँप बनकर निडर हो गया आयर खेत की मेड़ पर घूमने लगा |
एक दिन एक किसान अपने पुत्र के साथ खेत की ओर जा रहा था | उसके हाथ में लाठी थी | वह आगे – आगे चल रहा था और उसका पुत्र उसके पीछे – पीछे चल रहा था | अचानक जैसे ही किसान की नजर साँप पर पड़ी किसान ने पुत्र को रुक जाने के लिए कहा | किसान ने साँप के सिर पर लाठी मारी | साँप तड़पने लगा | जब तक साँप मरा  नहीं तब तक किसान उसे लाठी से मारता रहा |
साँप दुबारा विधाता के पास पहुंचा और बोला – “देव ! मैंने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था ,फिर भी एक क्रूर आदमी ने मुझे लाठी से पीटकर मार डाला | “
विधाता ने कहा – “ मेढ़क के बाद तुम साँप बनना चाहते थे | बोलो , अब तुम्हारी क्या इच्छा है ? तुम निर्दोष हो अतः अगले जन्म में तुम्हें कहाँ जन्म दूँ ? “
साँप ने वर माँगते हुए  कहा – “ भगवान ! मैं  डंडा बनकर उस आदमी को उसी तरह  मार डालना चाहता हूँ |जिस तरह उसने मुझे मारा है | इसलिए आप मुझे डंडा बना दीजिए | “
विधाता ने कहा – “ तुम्हें वृक्ष बना देता हूँ | वृक्ष से ही बाद में डंडा बन सकोगे | ”
फिर विधाता ने उससे पूछा – “ तुम ही बोलो  | मैं  तुम्हें कौन सा वृक्ष बना दूँ | ”
साँप ने कहा – “ आप मुझे नीम बना दीजिए | ”
 ” तथास्तु , ऐसा ही होगा ! “ यह कहकर विधाता ने उसे नीम का वृक्ष बना दिया |
नीम का वृक्ष  बढ़ चला , फुला और फलने लगा | गाँव की औरतें वृक्ष के नीचे आतीं और  निबोलियाँ चुनतीं |
उन निबोलियों को तेली के पास पहुँचा देतीं  | तेली उन निबोलिओं को घानी में डालकर उन्हें पेरता और तेल निकालता था |
अपनी संतान , निबोलिओं को इस तरह कष्ट सहता हुआ देखकर नीम रोया करता था | इसी तरह नीम को रोते हुए , कई वर्ष बीत गए |   नीम का पेड़ एक बढ़ई  के खेत में था | एक दिन उसने नीम के पेड़ को कुल्हाड़ी से काट गिराया | मोटी लकड़ी से घर की चौखट बनाई , पतली डाल से डंडा बनाया और बाकी को चूल्हे में झोंक दिया |
बढ़ई झगड़ालू स्वाभाव का था | हाथ में डंडा लेकर वह लोगों को डराता – धमकाता रहता था | एक दिन उसी किसान से उसका झगडा हो गया | जिस किसान ने साँप को मार डाला था | झगड़े के दौरान बढ़ई  ने  किसान पर इतनी जोर से डंडा चलाया कि उसका सिर फट गया और उसकी मौत हो गई |
बढ़ई पर मुकदमा चला और उसे सजा मिली | जज ने आदेश दिया कि वह डंडा , जो झगड़े की जड़ था , उसे जला दिया जाय |
विधाता के पास पहुँचकर डंडे ने अंतिम प्रार्थना करते हुए कहा – “ भगवान ! बहुत हुआ | अब मुझे कुछ वर्षो तक स्वर्ग का सुख प्राप्त करने दीजिए | ”
  इस  संसार में सभी को सुख और दुःख उठाने ही पड़ते हैं |  

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Bamboo Curry - A Santhal folk tale

भगवान् बुद्ध से जुड़ी कथा - प्रकाश का प्रमाण |

अंगुलिमाल