आपसी सहयोग

आपसी सहयोग 




एक दिन कुम्हार को अपने आप पर घमंड हो गया | और वह कहने  लगा – “ यह घड़ा मेरा बनाया हुआ है | यह मेरी मेहनत का फल है | ”
मिट्टी कुम्हार के इस घमंड को सहन न कर सकी और उसने कुम्हार से कहा – “ यदि मैं न होती , तो तुम घड़ा कैसे बनाते ? ”
मिट्टी  की बात सुनकर कुम्हार चुप  रह गया | लेकिन मिट्टी की यह बात पानी को पसंद नहीं आई | उसने मिट्टी से कहा – “ मिट्टी बहन , अगर मैं न होता तो  तुम और कुम्हार क्या कर सकते थे ? ”
चाक यह सब सुन रहा था | उसने तीनों से कहा - " अगर आप तीनों होते और मैं नहीं होता , तो क्या यह घड़ा बन सकता था ? "

आग को इन सब की मुर्खता पर हंसी आ गई | उसने कहा – “ यह क्यों भूल जाते हो कि तुम सब होते और मैं न होती , तो क्या यह घड़ा पकता ? मेरी गर्मी के कारण ही तो यह पकता है |  ” फिर आग ने ही सबको समझाते हुए कहा कि – “ सच  तो यह है कि घड़ा हम सबके सहयोग का फल है | ”


उस दिन के बाद से किसी ने भी अपने - आप पर गर्व नहीं किया | सबने यह समझ लिया कि आपसी सहयोग से कोई वास्तु बन पाती है |






 

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