अंधे की खीर
अंधे
की खीर
एक अंधे को उसके
साथियों ने भोजन पर आमंत्रित किया | अंधा बहुत गरीब था | खाने के लिए खीर परोसी गई
| उसने अपने जीवन में कभी भी खीर नहीं खाई थी | उसने अपने पास में बैठे हुए अपने
दोस्त से पूछा – “ बहुत स्वादिष्ट है , यह क्या है ? ”
दोस्त ने कहा – “
यह खीर है | दूध की बनी है | यह एक प्रकार का मिष्ठान है | ”
अंधे ने फिर
पूछा – “ दूध कैसा होता है ? ”
दोस्त ने बताया –
“ उजला होता है | श्वेत होता है | ”
अंधे ने कहा – “
मुझे उलझाओ मत , बात बनने के बजाय और बिगड़ती चली जा रही है |
मुझे खीर का कुछ पता नहीं , और तुमने दूध की बात
कही | मुझे दूध का पता नहीं , और तुमने श्वेत की बात कही , मुझे श्वेत का भी कुछ
पता नहीं | यह श्वेत क्या होता है ? ”
दोस्त ने कहा – “
तुम समझे नहीं ? श्वेत मतलब जैसा बगुला होता है ”
उस अंधे का
दोस्त पंडित रहा होगा | आज के पंडित यानी महा अंधे | नहीं तो वह अंधे को रंग की
बात समझाने नहीं बैठता |
अंधे ने कहा – “
मैं अब और कुछ पुछूं , ठीक नहीं होगा , क्यों की बात मेरी समझ से दूर से दूर
होती जा रही है
| मैंने बगुला कभी देखा नहीं | कुछ इस तरह से समझाओ कि मेरी समझ में आ सके | मैं अंधा हूं , यह देखकर बोलो | ”
दोस्त को तब होश आया | उसने कहा – “ तो फिर ऐसा
करो , यह मेरा हाथ है , मेरे हाथ पर हाथ फेरो | ” दोस्त ने अपने हाथ को इस तरह से
मोड़ा जैसे बगुले की गर्दन हो | अंधे ने दोस्त के हाथ पर हाथ फेरा और दोस्त ने कहा –
“ इस तरह बगुले की गर्दन होती है | ”
वह अंधा प्रसन्न
हो गया , उसने कहा – “ धन्यवाद ! तुम्हारे कष्ट के लिए तुम्हारा बहुत आभारी हूँ |
अब समझा कि खीर कैसी होती है ! मुड़े हुए हाथ जैसी ! ”
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