कथा कामदेव की


क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में प्रेम , आकर्षण और वासना के देवता कौन हैं ?
अगर नहीं तो आपको यह जरुर जानना चाहिए |
हिंदू धर्म में प्रेम , आकर्षण और वासना के देवता हैं  - कामदेव |
अमरसिंह द्वारा रचित  ‘ अमरकोष ’ में कामदेव के इक्कीस नाम मिलते है : मदन , मन्मथ , पंचशर , मार , कंदर्प , काम , अनंग इत्यादि |
कामदेव वस्तुतः प्रेम के अधिष्ठाता हैं | ब्रह्मा  - विष्णु - महेश आदि त्रिदेवों के समान कामदेव प्रमुख देवता नहीं  हैं | उनकी स्थिति त्रिदेवों से छोटी है | फिर भी , कामदेव के बिना सभी देव अधूरे रह जाते |
हिंदू धर्म के अनुसार ‘ धर्म - अर्थ - काम - मोक्ष ’ इन चारों की प्राप्ति  में ही जीवन की सम्पूर्णता है | इन चारों  में काम वही है – कामदेव | यानी जीवन में प्रेम , आकर्षण , वासना जो हर इनसान में गहरे तक समाया हुआ है |
कामदेव की पत्नी और सखा कौन हैं ?
कामदेव का वाहन क्या है ?
यह भी जानिए
कामदेव ने तोता को अपना वाहन चुना है | प्रजापति दक्ष की पुत्री रति कामदेव की पत्नी हैं और वसंत चिर सखा है |
 कामदेव की चार पत्नियाँ रति -प्रीति – शक्ति – मत्तता ( मद्शक्ति ) हैं |  रति अपने सौंदर्य और कोमल स्वाभाव के लिए पौराणिक कथाओं में प्रसिद्ध है | वह अपने पति कामदेव से एक पल के लिए भी दूर नहीं रह सकती |
कामदेव का धनुष गन्ना ( इक्षु ) से बना है और उसकी डोरी शहद से बनी होती है |  अरविन्द , अशोक , आम्रमंजरी , मल्लिका ( बेला या जूही ) और नीलकमल , इन पांच फूलों से वह तीरों का काम लेते हैं | भावनात्मक स्त्तर पर इन तीरों  के नाम हैं – उन्माद , तापन , शोषण , स्तम्भन और सम्मोहन |
प्राचीन काल में नगरों के बाहर , उद्यानों में , कहीं – कहीं नगरों के बीच भाग में भी कामदेव के मंदिर हुआ करते थे | ‘ मृच्छकटिक ‘ नाटक में  यह उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में इस तरह का एक मदन मंदिर था |
महाकवि बाणभट्ट के ‘ हर्षचरित ‘ से पता चलता है कि सम्राट हर्षवर्धन की बहन ‘ राज्यश्री ‘ के कौतुकगृह में , एक ओर कामदेव की और दूसरी ओर रति – प्रीति  के चित्र अंकित थे |
कामदेव की मूर्ति कैसी होनी चाहिए ?
कामदेव की मूर्ति कैसी होनी चाहिए इसके बारे में निर्देश ‘ विष्णुधर्मोत्तर पुराण में मिलता है : कामदेव का रूप अनुपम होना चाहिए तथा उसके आठ बाँह होंगे चार हाथों में शंख - पद्म – चाप – बाण और बाकी के चार हाथ उसकी चार पत्नियों के वक्षस्थलों पर होंगे | प्रतिमा में सबकी आंखें मदमस्त दिखनी चाहिए | झंडे पर मगर का चित्र बना हुआ होगा .......   |
बौद्ध धर्म में ‘ मार ‘ को कामदेव का पर्याय बताया गया है | मार  , कामदेव का पर्यायवाची शब्द भी है लेकिन अश्वघोष ने  बुद्धचरित  में  ‘ मार ‘ का बड़ा विकराल रूप चित्रित किया है | मगर ‘ मार ‘ की तुलना में कामदेव का रूप अहिंसक ही है | 
कामदेव का एक और नाम भस्मांकुर क्यों पड़ा ?
एक कविता में नागार्जुन ने रति विलाप के सन्दर्भ में , कालिदास से पूछा था –
शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महा ज्वाला में
घृत – मिश्रित सुखी – समिधा – सम
कामदेव जब भस्म हो गया
रति का क्रंदन सुन आँसू से
तुमने ही तो दृग धोये थे ?
कालिदास , सच – सच बतलाना
रति रोई या तुम रोये थे ?    
प्रस्तुत है एक पौराणिक आख्यान 
कथा कामदेव की
कामदेव ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं |
जन्म के साथ ही वह बहुत सुन्दर था  |  उसके शरीर से खुशबू आ रही थी |
 ब्रह्मा जी को प्रणाम करके काम देव ने पूछा –  “ मेरे लिए क्या कार्य होंगे , आप मुझे कौन – सा दायित्व  सौपेंगे | ”
ब्रह्मा जी ने कहा – “ अपने पुष्प बाणों से तुम स्त्रियों और पुरुषों को मोहित किया करना |  
मैं तुम्हें वरदान देता हूँ  कि  विष्णु , शिव आदि सभी देव गन तुम्हारे आधीन होंगे | “
 तब कामदेव ने सोचा : ब्रह्मा जी के इस वरदान की शक्ति का अंदाजा मैं अभी ही क्यों न कर लूँ ?
उसने धनुष की डोरी तान कर तीर को चढ़ाया ही था कि ब्रह्मा जी के अन्य पुत्र दक्ष आदि वासना ग्रस्त हो उठे | ब्रह्मा की मानस पुत्री संध्या अपने भाइयो पर ही मोहित हो गई |
स्वयं ब्रह्मा जी भी अपनी पुत्री पर रीझ गए | जब वह भागने लगी तब ब्रह्मा जी उसका पीछा करने लगे |
 इस दुर्घटना से क्षुब्ध होकर शंकर जी ने ब्रह्मा जी को फटकारा तब इन सब का असली कारण जानकर ब्रह्मा जी ने कामदेव को शाप दिया कि- “ तू रूद्र की तीसरी आँख से निकली महा ज्वाला में भस्म हो जाएगा | यह रूद्र ही तेरा संहार करेंगे | “
तब कामदेव ने ब्रह्माजी से कहा –  “ आप व्यर्थ ही मुझ पर क्रोधित हो रहे हैं |
 स्वयं आप ने ही तो मुझे ऐसा वरदान दिया है | मैं उस वरदान की जाँच कर रहा था | ”
तब ब्रह्माजी ने कामदेव को शाप से मुक्ति का आश्वासन दिया और कहा – “ शिव जब पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार करेंगे | उसी समय तुझे नया शरीर प्राप्त होगा | “   
दक्ष प्रजापति की पुत्री भगवान् शिव की पहली पत्नी थी | जब यज्ञ में दक्ष प्रजापति ने भगवान् शिव को आमंत्रित नहीं किया तब शिवानी अपने पिता से शिकायत करने पहुंच गई | दक्ष ने भगवान् शिव ( अपने दामाद को ) अपमान भरे शब्द कहें तब इस अपमान के कारण शिवानी यज्ञ के हवन - कुंड में कूद पड़ी ....
फिर भगवान् शंकर चिर – काल तक पत्नी के बिना रहे | सभी ओर से विरक्त होकर भगवान शिव ने कैलाश – पर्वत पर ध्यान - योग की लम्बी प्रक्रिया अपना ली |
इस बीच कई कल्प गुजर गए | फिर एक ऐसा समय भी आ गया जब महाबली राक्षस तारकासुर देवताओं को परेशान  करने लगा  |देवता तारकासुर का सामना नहीं कर पाए तब सभी देवता भगवान् विष्णु को आगे करके ब्रह्मा जी से प्रार्थना करने पहुँच  गए |
ब्रह्मा जी ने उनसे कहा – “ भगवान् शिव यदि हिमालय की पुत्री गौरी से विवाह कर लें तो उस दंपत्ति से ऐसे बालक का जन्म होगा जो महाबली तारकासुर को हरा सकेगा  | ”
ब्रह्मा जी ने देवताओं को उपाय तो बता दिया लेकिन उस उपाय को कारगर बनाने के लिए देवताओं के प्रमुखों को बहुत सोचना पड़ा | देवसभा सुधर्मा की तुरंत बैठक हुई | उनके सामने यह समस्या थी कि समाधि में  मग्न रहने वाले शिव – शंकर के मन को गौरी की तरफ कैसे आकर्षित करवाया जाए |
एक बार नारद मुनि ने हिमालय के सामने यह भविष्यवाणी किया था कि –  “ आपकी यह कन्या शिव का वरन करेगी | “
वास्तव में हिमालय की भी यही इच्छा थी लेकिन शिव जी से इस प्रकार की बात करने में उन्हें संकोच होता था | क्या पता , शिव जी इनकार कर दें | इसी समय पुरे हिमाचल में यह बात फैल गई थी कि जटाजूटधारी शिव जी कैलाश पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं | गौरी अपनी सखियों के साथ जाए और शिव जी की सेवा करे – इसमे हिमालय की भी सहमती थी और शिव जी को भी किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं थी |
इधर इंद्र का संदेस पाकर कामदेव इंद्र के पास आकर बैठ गए |   
फिर विनम्र भाव से मीठी लेकिन दृढ़ वाणी में कामदेव ने इंद्र से पूछा – “ प्रभु , वह कौन सा काम है जिसके लिए आपने
मुझे याद किया है ? आप उसका नाम बता दीजिए ! वह कौन है जिसने आपको परेशान कर रखा है ?
क्या वह कोई नारी है जो आपके मन को मथित कर रही है मगर आपके पास नहीं आ रही है ? पुरुष हो चाहे स्त्री , जो भी आपकी अशांति का कारण है , आप मुझे उसका सिर्फ नाम भर बता दीजिए ! फिर देखिये कि कैसे मैं उसे आपकी शरण में ले आता हूँ | यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं ध्यानमग्न शिव के भी छक्के छुड़ा दूँ . . | ”
कामदेव की बातें सुनकर देवराज इंद्र का मनोबल वापस लौट आया | उसने कामदेव के कंधे पर हाथ रखकर कहा – “ मित्र ! तुम सबकुछ कर सकते हो ! वज्र के समान तुम भी मेरा हथियार हो , वज्र वह काम नहीं कर सकता जो काम तुम करते हो | तप की शक्ति के सामने मेरा वज्र सदा बेकार हो जाता है लेकिन तुम तो सदा से अचूक रहे हो ! बस , अब तुम्हें करना यही है कि कैलाश पर्वत पर ध्यानमग्न शिव की साधना भंग करनी है और शिव के मन में हिमाद्रिनन्दिनी गौरी के प्रति आकर्षण पैदा कर दो | यह बहुत जरुरी काम है | बन्धु ! देव – समाज का संकट दूर करने का और कोई रास्ता नहीं है |  शिव जी का गौरी के प्रति आकर्षण पैदा होगा तो तो शिव उससे विवाह करेंगे | विवाह होगा तो गौरी माँ बनेगी और हमें एक सफल सेनापति मिलेगा | शिव को गौरी  के प्रति आकर्षित करने के इस काम में तुम अपने चिर सखा बसंत से भरपूर सहायता प्राप्त करोगे | अनुपम सुंदरी रति तो छाया की तरह हमेशा तुम्हारा अनुगमन करती ही है | जाओ ! अब देवताओं की आशाओं के एक मात्र उम्मीद तुम्हीं हो ! ”
कामदेव ने यह ठान लिया कि प्राण देकर भी वह देवताओं के प्रधान इन्द्र की ओर से सौपा हुआ यह काम जरुर पूरा करेगा |
कामदेव अपने सखा वसंत को लेकर कैलाश पर्वत की ओर चल पड़ा | रति भी शंकित मन से पीछे – पीछे चल पड़ी |
वसंत ने कैलाश पर्वत के उस क्षेत्र में जादू कर दिया | जमा हुआ बर्फ अचानक पिघल गया | हर तरफ हरियाली छा गई |
गौरी की सुन्दरता देखकर कामदेव आश्वस्त होता है – शंकर जरुर इसकी ओर आकर्षित होंगे और सचमुच ही गौरी को देखकर  शिव का ध्यान शिथिल  पड़ जाता है | जब शिव जी ने गौरी को प्रेम भरी नजरों से देखा तो सारा परिवेश हुलसित हो गया | प्रभु के बदन से लिपटे हुए बड़े- छोटे नाग तक उमंग में आकर अलग हट गए | इस अचानक उमंग का असर समूची प्रकृति में दिखने लगा |
शिव परिचर्या के लिए आई गौरी की प्रणतियाँ स्वीकार करते हैं | गौरी अपनी सखियों जया और विजया के साथ सेवा के छोटे - मोटे काम पुरे मनोयोग से करती आई है लेकिन वसंत और कामदेव के प्रभाव से वह आज लाल रेशमी वस्त्र और फूल के आभूषण धारण करके आ गई थी ! शिव जी ने अपने अन्दर गौरी के प्रति आकर्षण महसूस किया |
फिर अगले ही पल अचानक शिव जी को अपने अन्दर का बदलाव साफ़ पता चल गया कारण जानने के लिए वे इधर – उधर देखते है कि तभी उन्हें लताकुंज की ओट में खड़ा मदन दिखाई पड़ गया | वह उन्हीं की तरफ अपने ‘ पुष्पवाण का निशाना लगा कर  खड़ा था |  फिर क्या था रूद्र का गुस्सा भड़क गया और उनकी तीसरी आंख खुल गई और उससे निकली महा ज्वाला में कामदेव अगले ही क्षण जलकर भस्म की ढ़ेर बन गया |  
फिर अगले ही क्षण शिव जी अपने गण के साथ अदृश्य हो गए |
अपने पति को भस्म होता देख कर रति बेहोश हो गई | जब उसे होश आया तब उसने विलाप करना शुरु कर दिया | वसंत का कहीं कोई पता नहीं था | रति रो- रोकर उसे पुकारने लगी | “ मैं आत्मदाह करुँगी ,  वसंत मेरे लिए कहीं से आग नहीं ला दोगे ? बसंत ! क्या तुम भी जलकर खाक हो गए हो ?  
रति का विलाप सुनकर वसंत सामने आ गया लेकिन वह चुपचाप रति का रोना सुनता रहा |
तभी आकाश - वाणी हुई – “ तेरा पति मरा नहीं है ! वह कभी मर ही नहीं सकता | भस्म हो भी गया है तो अपने - आप अंकुर बनकर उसी भस्म -राशि से बार – बार फूट पड़ेगा | भविष्य में शिव – पार्वती का विवाह होगा तब स्वयं शिव ही मदन को आमंत्रित करेंगे “
आकाश -वाणी सुनकर रति और वसंत प्रसन्न होकर वहाँ से चले गए |
बाद में कामदेव का फिर से जन्म होता है | भस्मांकुर का अर्थ ही है : भस्म में से अंकुर , भस्म ( राख ) हो जाने पर जो अंकुर की तरह फुट पड़े | इस प्रकार कामदेव का एक और नाम  भस्मांकुर पड़ा |     

 
        

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