कथा बर्बरीक की


तीन बाणधारी – बर्बरीक
महाभारत युग का सबसे शक्तिशाली योद्धा कौन था ?
कर्ण , अर्जुन , भीम , द्रोणाचार्य , भीष्म या स्वयं भगवान् श्री कृष्ण | वास्तव में इनमे से कोई नहीं | महाभारत का सबसे महान योद्धा जो इस युद्ध में भाग भी नहीं ले सका |
वह था  – बर्बरीक |
रामायण का सबसे वीर योद्धा कौन था ?
निःसंदेह – मेघनाद |
रामायण में मेघनाद ने अभूतपूर्व युद्ध कौशल दिखाया | मगर बर्बरीक महाभारत के युद्ध में भाग भी नहीं ले सका फिर भी वह महाभारत का सबसे वीर योद्धा होने का गौरव रखता है
बर्बरीक भीम और हिडिम्बा के पोते थें |  उनके पिता का नाम घटोत्कच और माँ का नाम मोरवी था |
बर्बरीक ने नव दुर्गा की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये |
बर्बरीक ने अग्नि देव से एक ऐसा धनुष प्राप्त किया | जो उसे तीनो लोकों में विजयी बनाने में समर्थ था |
बर्बरीक ने युद्धकला अपनी माँ प्राप्त किया था | महाभारत के युद्ध में भाग लेने की इच्छा लेकर जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद लेने पहुंचे तब उन्होंने अपनी माँ को हारते हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया |
बर्बरीक अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर कुरुक्षेत्र के मैदान की तरफ चल पड़े |
 ब्राह्मण के वेश में श्री कृष्ण ने रास्ते में उन्हें रोका और उसकी शक्ति को परखने के लिए
 बर्बरीक की हँसी उड़ाते हुए कहा –  ” मात्र तीन बाण लेकर युद्ध में सम्मिलित होने आये हो ! ”
यह सुनकर बर्बरीक ने कहा –  ” मात्र एक बाण सम्पूर्ण शत्रु सेना को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है , और ऐसा करने के बाद बाण वापस मेरे तरकस में ही आयेगा | अगर एक साथ तीनो बानो को प्रयोग में लूँगा तो तीनों लोको में हाहाकार मच जायेगा 
वे दोनों एक पीपल के पेड़ के नीचे खड़े थे |  तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा – “ यदि तुमने  इस पीपल के सभी पत्तों को एक ही बाण से भेद दिया  तब मैं यह मान लूँगा कि वास्तव में ही तुम एक ही बाण से महाभारत का युद्ध समाप्त कर सकते हो | ”
बर्बरीक द्वारा छोड़े गए बाण ने एक पल में  उस पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया और श्री कृष्ण के पैरों का चक्कर लगाने लगा | क्योंकि श्री कृष्ण ने चुपके से एक पत्ता तोड़कर अपने पैरों के नीचे छुपा लिया था | इस बात से अनजान बर्बरीक ने कहा – “ आप अपने पैरों को हटा लीजिये क्योंकि एक पत्ता आपके पैरों के नीचे दबा हुआ है अन्यथा यह बाण आपके पैरों  को भेदते हुए पत्ते को भेद देगा  | ” 
बर्बरीक की शक्ति देखकर | श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा  – “ तुम युद्ध में  किस पक्ष की तरफ से सम्मलित होगे ? “
तब बर्बरीक ने कहा – “ जिस पक्ष की सेना कमजोर होगी और युद्ध में हार रही होगी , मैं उस तरफ से युद्ध में भाग लूँगा | ”

बर्बरीक से शक्तिशाली और कोई नहीं है यह बात भगवान् श्री कृष्ण अच्छी तरह से जान चुके थे |
वह यह भी जानते थे कि बर्बरीक जिस तरफ से युद्ध लड़ेगा उसकी जीत निश्चित है | लेकिन बर्बरीक ने एक अजीब निर्णय लिया था  |जो भी युद्ध में हारता हुआ दिखेगा , वह उस पक्ष का साथ देगा | बर्बरीक के इस अनोखे निर्णय ने भगवान् श्री कृष्ण को असमंजस में डाल दिया |इस तरह तो युद्ध का कभी परिणाम ही नहीं आएगा , क्योंकि बर्बरीक का पक्ष कभी हार नहीं सकता और जैसे ही दूसरा पक्ष हारने लगेगा , वह उस पक्ष की तरफ से युद्ध लड़ने लगेगा और फिर जल्दी ही हारता पक्ष जीतने लगेगा |फिर वह हारते पक्ष की तरफ से लड़ने लगेगा | इस तरह दोनों तरफ का विनाश होता जायेगा | इस प्रकार वह अपने अलावा हर किसी को नष्ट कर देगा | मगर युद्ध का कोई भी परिणाम कभी भी नहीं निकलेगा | बिना परिणाम के इस युद्ध से विध्वंसकारी कुछ और नहीं हो सकता | ऐसी परिस्थिति ही न बने , इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को रोकने का निश्चय किया |और उसे रोकने का एक मात्र उपाय था – बर्बरीक की मृत्यु |
ऐसा  विचार करके श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की अभिलाषा जताई |
श्री कृष्ण बर्बरीक से शीश दान मांगने वाले हैं | इस बात को बर्बरीक समझ चुका था | इसलिए वह दान देने से बचने की कोशिश करने लगा |   
फिर भी जब श्री कृष्ण ने कहा – “ मस्तक दान कर दो |
बर्बरीक ने कहा  – “ मेरे इस शरीर पर सिर्फ मेरा ही अधिकार नहीं है | मेरे शरीर में मेरे पिता का भी अंश है | मेरे पिता का वंश भी इसी शरीर के कारण आगे बढे़गा | मेरे जितने भी परिजन हैं |  उन सबका मुझ परअधिकार है | और सबसे बढ़कर मेरी माता का अधिकार है , इसलिए अपनी माता की आज्ञा के बिना | अपना शीश दान देकर , इस शरीर का त्याग कैसे कर सकता हूँ ?
तब श्री कृष्ण ने कहा –  ” बर्बरीक ! यह तर्क जो तुम कर रहे हो यह भी मेरी ही कृपा है | यदि तुम चाहते हो तो , तुम भी यह देख लो कि मेरा रूप क्या है ? “
और फिर बर्बरीक श्री कृष्ण के वक्ष -स्थल में समा गया और अगले ही पल हँसता हुआ बाहर निकल आया |
उन्होंने उसे अपना विराट रूप दिखलाया  |
यह देखकर बर्बरीक ने कहा –    हे मुरारी | मैं तो आपको पहले ही जानता हूँ |  जब मैं आपमें ही समाया हुआ हूँ तो फिर मस्तक दान करने से भी मेरा कहाँ कुछ नष्ट  होता है | जो आपका है , उसे आप मांग रहे हैं |  बस एक इच्छा है ! अंत तक युद्ध देखना चाहता हूँ | “ 
फिर श्री कृष ने उसका मस्तक काटकर  पर्वत की चोटी पर रख दिया | और अंत तक महाभारत का युद्ध देखने का आशीर्वाद दिया |
आज भी राजस्थान में बर्बरीक की पूजा खाटुश्यामजी  के नाम से की जाती है |

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Bamboo Curry - A Santhal folk tale

भगवान् बुद्ध से जुड़ी कथा - प्रकाश का प्रमाण |

अंगुलिमाल