भगवान बुद्ध और महाकाश्यप


                          बुद्ध और महाकाश्यप

एक बार भगवान बुद्ध यात्रा पर जा रहे थे | उनके शिष्य महाकाश्यप भी उनके साथ थे | महाकाश्यप भगवन बुद्ध से प्रायः तरह - तरह के प्रश्न पूछा करते थे , जिससे साधारण लोगो के मन में
उठने वाली जिज्ञासाओं का समाधान किया जा सके | इसी प्रकार एक बार महाकाश्यप ने भगवान बुद्ध से पूछा - " भगवान मन तो अत्यंत चंचल होता है , उसकी चंचलता को रोक कर उसे स्थिर कैसे किया जा सकता है ? मन की साधना तो अत्यंत कठिन प्रतीत होती है
कठिन प्रतीत होती है |  साथ ही मन को गंदे विचारों से हटाकर उसे स्वच्छ और  पवित्र बनाने का क्या उपाय है ? " भगवान बुद्ध ने उस समय महाकाश्यप के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया | उन्होंने मौन धारण कर लिया  |उनके मौन का कारन न तो यह था कि उनको
प्रश्न का उत्तर नहीं पता था और न यह कि वे उत्तर नहीं देना चाहते थे | वास्तविकता तो यह थी की वे उचित अवसर और उदाहरण   की प्रतीक्षा करते थे | कुछ ऐसा ही हुआ महाकाश्यप के प्रश्न के साथ |
आखिर भगवान बुद्ध ने महाकाश्यप को उनके प्रश्न का उत्तर दिया | एक बार पुनः भगवान बुद्ध और महाकाश्यप यात्रा पर निकले , गर्मी की दोपहर थी तो वे दोनों विश्राम करने के लिए एक वृक्ष की छाया में बैठ गए |भगवान 
बुद्ध ने महाकाश्यप को , पीने के लिए जल लाने को कहा | महाकाश्यप पास के झरने तक गए | लेकिन बिना जल लिए लौट आए |  बुद्ध ने महाकाश्यप से पूछा - " क्या हुआ ? तुम बिना जल लिए वापस क्यों आ गए ? "  महाकाश्यप ने बताया - " कोई  पशु झरने को पार करके निकला
और झरने का जल दूषित हो गया है | इसलिए मैं  नदी से जल लेकर आता हूँ | "
 भगवान बुद्ध ने कहा - " नहीं  ! नदी यहाँ से बहुत दूर है | इसलिए तुम झरने के ऊपर की ओर जाओ |  वहाँ स्वच्छ जल जरुर मिलेगा | " यह सुनकर महाकाश्यप झरने के स्रोत की तरफ गए और स्वच्छ जल लेकर आ गए |
भगवान बुद्ध ने उस जल से अपनी प्यास  बुझाई | फिर उन्होंने कहा - " महाकाश्यप ! तुमने एक बार पूछा था कि चंचल मन को कैसे साधा जाय  ? और मन की गंदगी को हटाकर उसे कैसे निर्मल बनाया जाय | तो जिस प्रकार झरने से जल लाने के लिए धैर्य रखना पड़ा और उसके मूल स्रोत की तरफ
जाने  से जल का स्वच्छ रूप में मिल गया , उसी प्रकार मन को भी धैर्य के साथ साधना पड़ता है | यदि धैर्य नहीं है तो मन को संभालना कठिन है | वह इधर - उधर भटकता ही रहेगा और इस कारन उसमें गंदगी भी आती रहेगी | "

हम जीवन में जो भी कार्य करते हैं ,उनको यदि धैर्य के साथ करते है तभी सफलता मिलती है | यदि मन उतावला है और हम जल्दी ही कुछ पा लेना चाहते हैं तो उसमे हानि ही होगी | यदि महाकाश्यप , बुद्ध की प्यास बुझाने की जल्दी में , झरने का जल जैसा था वैसा ही ले आते तो उस जल को पीकर
बुद्ध कई रोगों से ग्रस्त हो सकते थे |
जो धैर्य रखता है , अपना काम ठीक से धैर्य के साथ करता है , मन को इधर - उधर भटकने नहीं देता है , फल की तुरंत प्राप्ति का लालच नहीं करता है , वही जीवन में सफलता प्राप्त करता है |      

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