हमारा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है |


हमारा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है |

सूफी संत बालशेम ने एक बार अपने एक शिष्य को कुछ धन देकर कहा – “ इसे किसी दरिद्र व्यक्ति को दान कर देना | ”

वह शिष्य धन लेकर वहाँ से चल पड़ा | वह अभी कुछ दूर ही गया था कि वह सोचने लगा की गुरु जी ने यह धन किसी गरीब को देने के बजाय किसी दरिद्र को देने के लिए क्यों कहा ? शिष्य को यह भी याद आया कि एक बार उसके गुरु ने सत्संग के समय कहा था कि गरीब और गरीबी परिस्थितियों के कारण होते हैं , दरिद्रता मन की इच्छाओं और मन की भावनाओं से जन्म लेती है | यह विचार कर वह शिष्य किसी दरिद्र व्यक्ति को खोजने लगा | 

दरिद्र व्यक्ति की तलाश में , शिष्य एक नगर में पहुंचा |  वहां उसने कुछ लोगो को यह बात करते हुए सुना कि हमारे राजा ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रजा पर अत्यधिक कर लगा दिए हैं और वह इस तरह से लोगों को लूट रहा है |

 शिष्य ने जब यह सुना तो उसे लगा कि इस नगर के राजा से बढ़कर दरिद्र व्यक्ति और कोई नहीं हो सकता | यह सोचकर वह सीधा राजा के दरबार में पहुंचा और उस धन को राजा को समर्पित कर दिया | यह सब देखकर राजा को हैरानी हुई , और सोचने लगा कि इस संत शिष्य ने मुझे इतना धन क्यों दिया ?

 राजा के पूछने पर बलशेम के शिष्य ने कहा – “ राजन , आपके पास धन तो पहले से ही बहुत है लेकिन और धन की लालसा पूर्ति के लिए आपने जनता पर अत्यधिक कर लगा दिए हैं | जिससे प्रजा दुखी है | आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आपके पास पर्याप्त धन है , लेकिन इच्छाओं की पूर्ति के लिए कभी भी किसी के पास पर्याप्त संसाधन और धन नहीं हो सकता है | मनुष्य अपनी इच्छाओं के कारण दरिद्र और दुखी बना रहता है | इसलिए जो इन इच्छाओं के सत्य को जान लेता है | वह दुःख से नहीं अपनी चाहतों से मुक्ति खोजता है | क्योंकि जो अपनी इच्छाओं से मुक्ति प्राप्त कर लेता है , उसके जीवन से दरिद्रता , दुःख , याचना और दासता के भाव अपने आप ही मिट जाते हैं | "

यह बात सुनकार राजा ने अपने व्यवहार में बदलाव किया | आवश्यक करो को छोड़कर बाकी सभी करों से जनता को मुक्त कर दिया | अब प्रजा के सामने से उसकी बुरी छवि मिट गई और उसका स्थान उज्जवलता और चमक ने ले लिया |  
      
हमारा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व का दर्पण होता है | 








हम चाहे कितना ही विद्वान हो , हमारे पास चाहे कितना ही धन हो , हम महल में रहते हो , यह सारी चीजें कोई मायने नहीं रखती हैं , यदि हमारा व्यवहार अच्छा नहीं है तो हम व्यक्तित्व के गरीब ही समझे जायेंगे | कोई व्यक्ति धन – दौलत , जमींन जायदाद से अमीर नहीं होता , गरीब होकर भी यदि वह व्यक्ति व्यक्तित्व का धनी है तो निःसंदेह ही महान और समृद्ध होता है | संसार के अनेक महापुरुष अत्यंत साधारण परिस्थितिओं में रहते हुए भी अपने व्यक्तित्व के बल पर उन्नति के सर्वोच्च सिखर पर पहुंचे थे |

यदि हम अपने व्यक्तित्व का विकास करना चाहते हैं तो हमें अपना व्यवहार कोमल और विनम्र बनाना पड़ेगा | मतलब हमारे व्यक्तित्व विकास में हमारे व्यवहार और अछे गुणों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है | किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व उसकी इच्छाओं के अनुसार ही रूप ग्रहण करता है | हम जैसा सोचते है वही हमारे व्यक्तित्व में झलकता है | हमारा चेहरा और आंखें हमारे व्यक्तित्व का दर्पण बन जाती हैं | जो सच्चा है , मन से निर्मल है , उसके चेहरे से सौम्यता और शांति झलकती है | कुछ लोग ऐसे होते है जिन्हें देखते रहने का मन करता है | लेकिन जो लोग दुष्ट स्वाभाव के होते हैं , उनके व्यवहार और चेहरे से ही प्रायः पहचाना जा सकता है | हमारे व्यक्तित्व की उज्ज्वलता हमारे चेहरे और आँखों से पढ़ी जा सकती है |  
              
व्यक्तित्व के विकास के लिए हमें अपनी इछाओं को कम करना चाहिए | हमारे मन में हर पल कोई न कोई  इच्छा जन्म लेते रहती है | और वह जब पूरी नहीं हो पाती तब हम दुःखी होते रहते है | 

भगवान बुद्ध ने भी कहा है – “ मनुष्य की इच्छाएं ही उसके कष्टों का कारण है | ”

जिसकी इच्छाएं जितनी अधिक होती है , वह उतना ही मानसिक रूप से दरिद्र होता है और उसके जीवन में सदा दुःख ही समाया रहता है | अनेको इच्छाओं को पूरा करने में हम परेशान और दुखी रहते हैं लेकिन जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं के मोहजाल से मुक्त हो जाता है वह उतना ही सुखी , स्वतंत्र और समृद्ध होता है |
      
हमें अहंकार से बचना होगा 

अहंकार व्यक्तित्व विकास  का सबसे बड़ा शत्रु होता है |
अहंकार के कारण हमें उचित अनुचित का ख्याल ही नहीं रह जाता है | अहंकारी लोग अपनी शक्ति और सामर्थ्य का प्रयोग किसी पर भी अनुचित प्रकार से कर देते है | इसलिए अहंकारी व्यक्ति कभी भी व्यक्तित्व का धनी नहीं हो सकता है | 

‘‘ अच्छे व्यवहार का कोई आर्थिक मूल्य भले ही ना हो .....  
पर करोड़ो दिलों को खरीदने की शक्ति रखता है ..... ! !  ’’

विचारक जे ऐलन का कथन है – “ सद्व्यवहार से उचित और सस्ती कोई अन्य वस्तु नहीं है | वास्तव में बाहरी जगत में प्रकट व्यवहार कुछ नहीं है | बल्कि हमारे अन्दर जो कुछ भी है , हमारा व्यक्तित्व उसकी झलक मात्र है | हम जैसे होते हैं , वैसा ही हम व्यवहार करते हैं |  ” 

हितोपदेश में कहा गया है –   न कश्चित्क्स्य चिन्मित्रं न कश्चितकस्य चिद्रिपुः |
                                        व्यवहारेण   मित्राणी   जायन्ते   रिपवस्तथा   ||    

अर्थ यह है कि - न तो कोई किसी का मित्र है , और न कोई किसी का शत्रु है , व्यवहार से मित्र तथा शत्रु बन जाते हैं |






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