जैसा अन्न वैसा मन


 ' छान्दोग्य ' उपनिषद् में उद्दालक अपने पुत्र श्वेतकेतु को अपने प्रयोग के द्वारा उपदेश देते हुए कहते हैं - " हे सोम्य ! मथे जाते हुए दही का जो सूक्ष्म भाग होता , वह ऊपर जमा हो जाता है ; वह घी होता है | हे सोम्य ! उसी प्रकार खाए हुए अन्न का जो सूक्ष्म अंश होता है , वह ठीक तरह से ऊपर आ जाता है , यह मन होता है | हे सोम्य ! पीये हुए जल का जो सूक्ष्म भाग होता है , वह जमा होकर ऊपर हो जाता है और वह प्राण हो जाता है | हे सोम्य ! खाए हुए तेज का जो सूक्ष्म भाग होता है , वह जमा होकर ऊपर आ जाता है और वाणी हो जाता है | इस प्रकार हे सोम्य ! मन अन्नमय है , प्राण जलमय है और वाणी तेजोमय होता है | "
यह सब सुनकर श्वेतकेतु ने कहा - " भगवन् ! मुझे फिर समझाइये | ''
उद्दालक ने कहा - " ठीक है , सोम्य ! सुनो , पुरुष सोलह कलाओं वाला होता है | तू पंद्रह दिन भोजन मत कर , सिर्फ जल ग्रहण कर | जल पीते रहने से तू मरेगा नहीं , क्योंकि प्राण जलमय है | पर्याप्त जल ग्रहण करते रहने से तुम्हारे प्राण का नाश नहीं होगा | "
श्वेतकेतु ने पंद्रह दिन तक भोजन नहीं किया | उसके बाद वह अपने पिता के पास आया और बोला - " भगवन् ! क्या बोलूं ? "
उद्दालक ने अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहा - " ऋग्वेद , ययुर्वेद और सामवेद का पाठ करो | "
श्वेतकेतु बोला - " मुझे उनका स्मरण नहीं हो रहा है | "  ( उसकी यादास्त क्षीण हो गयी थी | )
तब उद्दालक ने कहा - " हे सोम्य ! जैसे धधकती आग में से जुगनू के बराबरसिर्फ एक छोटा सा अंगारा रह जाए तो वह अधिक दाह नहीं कर सकता , उसी प्रकार तेरी सोलह कलाओं में से सिर्फ एक कला , प्राण ही बाकी रह गयी है , इसलिए उस एक कला के द्वारा तू वेदों का स्मरण नहीं कर पा रहा है | अच्छा ! अब तू जा , और भोजन करने के बाद मेरे पास आना , तब तू मेरी बात समझ जाएगा | "
भोजन करने के बाद श्वेतकेतु पिता के पास आया | फिर पिता ने जो कुछ भी पूछा , वह सब उसके मन के सामने उपस्थित हो गया |
तब पिता उससे बोले , ' हे सोम्य ! जैसे धधकती आग में से जुगनू के बराबर एक छोटा सा अंगारा भी बाकी रह जाये और उसमे तृण डालकर फिर से प्रज्वलित कर दिया जाए , तब वह पहले से भी ज्यादा दाह कर सकती |
इसी प्रकार हे सोम्य ! तेरी सोलह कलाओं में से एक कला बची रह गयी थी | वह अन्न के द्वारा प्रज्वलित कर दी गयी | अब उसी से तू वेदों का स्मरण कर रहा है | अतः हे सोम्य ! मन अन्नमय है , प्राण जलमय है और वाणी तेजोमय है |
तब श्वेतकेतु ने कहा - " हाँ , अब मैं अच्छी तरह से समझ गया हूँ | "
जिन लोगों को इस उपदेश में शक हो , वे पंद्रह दिन तक भोजन नहीं करें सिर्फ जल ग्रहण करें और देखें  कि उनके मन को क्या होता है ! 
   

    

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